रोहित यादव की कलम से , जी हां, भूतपूर्व डीजीपी, गुप्तेश्वर पांडे ना घर के, ना घाट के हिंदी का यह चरितार्थ इन पर सही फिट होता है। डीजीपी का पोस्ट बहुत बड़ा होता है ,उनसे मिलने के लिए विधायक और सांसद को घंटे भर इंतजार करना होता है। लेकिन भूतपूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे को विधायक बनने की इतनी लालसा थी कि अपने पद से वी आरएस, लेकर जनता दल यू में सदस्यता ग्रहण कर ली, और उन्हें उम्मीद थी कि विधायक के पद से इस बार के चुनाव में लड़ेंगे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला, दिल के अरमां आंसुओं में बह गए ,हिंदी का यह चरितार्थ भी सही फिट होता है। उन्हीं के विभाग के हवलदार परशुराम चतुर्वेदी ने बीजेपी से टिकट लेकर गुप्तेश्वर पांडे को पटखनी दे दी।
अपने को, नीतीश कुमार के करीबी बताने वाले रोविन हुड , आज कहीं के नहीं रहे। रोविन हुड को राजनीतिक का स्वाद का एहसास लगने लगा है।
हालांकि मीडिया के सामने आकर अपना बयान दिए हैं कि उन्हें कोई मलाल नहीं है, वे पार्टी के सच्चे सिपाही है। नीतीश कुमार किसी को नहीं ठखते।