बट सावित्री व्रत 2020: अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगा था, यमराज से सावित्री, वह भी पति की मृत्यु के बाद।
यह व्रत जेष्ठ अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है ।विवाहित महिलाएं, इस व्रत को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद पाने के लिए रखती है, कहा जाता है कि व्रत को रखने का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब इस व्रत की कथा को सुना जाता है। यह पौराणिक कथा इस प्रकार है।कथा के अनुसार अशवपति नाम का एक राजा था। राजा के घर कन्या के रूप में सावित्री का जन्म हुआ, जब वह विवाह योग हुई, तो राजा ने अपने मंत्री के साथ सावित्री को अपना पति चुनने के लिए भेज दिया। सावित्री ने अपने मन के अनुकूल पति, सत्यवानको चुन लिया । सत्यवान के पिता(महाराजा) और माता दोनों वनों में रहते थे ,वहीं जब सावित्री विवाह करके लौटी तो नारद जी ने महराज को बधाई दी ,साथ ही नारद मुनि ने यह भविष्यवाणी करते हुए कहा कि सत्यवान अल्पायु का है । उसकी जल्द ही मृत्यु हो जाएगी, नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा मुरझा गया, उन्होंने सावित्री से किसी अन्य को अपना पति चुनने की सलाह दी, परंतु सावित्री ने उत्तर दिया कि आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो अब वह चाहे अल्प आयु हो या दीर्घायु, मैं किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नहीं दे सकती । सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात कर लिया ,नारद जी द्वारा बताए हुए दिन से 3 दिन पूर्व से ही सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया । नारद जी द्वारा निश्चित तिथि को , जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल के लिए चला तो सास-ससुर से आज्ञा लेकर, वह भी सत्यवान के साथ जंगल तक गई, वहां पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए , सत्यवान वृक्ष पर चढ़ा । चढ़ने के बाद उसके सिर में भयंकर पीड़ा होने लगी । उसे बरगद के पेड़ के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी जांघों पर रख लिया। देखते ही देखते विधान की रूपरेखा स्पष्ट की और सत्यवान का प्राण यमराज लेकर चल दिए। यमराज के पीछे पीछे आती हुई सावित्री को देख ,यमराज ने उसे लौटाने का आदेश दिया। पर सत्यवती ना लोटी। जहां पति हो, वहीं पत्नी, यही धर्म है यही मर्यादा है, सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले कि पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी मांग लो। सावित्री ने यमराज से सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु मांगी , यमराज तथास्तु कह कर आगे बढ़ गए ।
सावित्री यमराज का पीछा करते ही जा रही थी, वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री बोली कि पति के बिना नारी के जीवन की सार्थकता नहीं।
यमराज ने सावित्री के पति धर्म से खुश होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। इस बार उसने अपने ससुर का राज वापस दिलाने की प्रार्थना की,यमराज ने तथास्तु का वरदान देकर आगे बढ़ गए ,सावित्री यमराज के पीछे चलती रही, इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा ,तथास्तु कहकर जब यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली ,आपने मुझे स्वयं सौ पुत्रोंं का वरदान दिया है पर पति के बिना मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं । अपना वरदान पूरा कीजिए , सावित्री के धर्म ,ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के अपने पास से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान लेटा हुआ था। सावित्री ने वटवृक्ष का परिक्रमा किया तो सत्यवान जीवित हो उठा। सावित्री जब अपने ससुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई।